Gandhi’s Movements In Hindi: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी के 7 आंदोलन

Gandhi's Movements In Hindi

Gandhi’s Movements In Hindi: गांधी जी का असली नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के पोरबंदर शहर में हुआ था। वे बचपन से ही सरल और सच्चाई पसंद करने वाले व्यक्ति थे। आगे की पढ़ाई के लिए वे इंग्लैंड चले गए, जहां उन्होंने 1891 में कानून की डिग्री प्राप्त की और वकील बने। पढ़ाई पूरी करने के बाद गांधी जी कुछ समय के लिए अफ्रीका चले गए, जहां वे 1893 से 1914 तक रहे। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लोगों के साथ हो रहे भेदभाव और अन्याय को देखकर उन्होंने वहां के लोगों के हक के लिए संघर्ष शुरू कर दिया।

यही वह समय था जब उन्होंने ‘अहिंसा’ (बिना हिंसा के विरोध करना) और ‘सत्याग्रह’ (सच और न्याय के लिए तरल आंदोलन) जैसे सिद्धांतों को एकजुट किया और इन पर आधारित अपना एक नया राजनीतिक विचार तैयार किया। यह विचार बाद में उनके सभी रेस्तरां की स्थापना में हुआ। जब 1915 में भारत स्वतंत्रता से बाहर हुआ, तो उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। उनके नेतृत्व में आजादी की लड़ाई जन-आंदोलन का रूप लेने लगी, जिसमें आम जनता, बड़े पैमाने पर लोग शामिल थे।

महात्मा गांधी के नेतृत्व ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा दी। वे केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक असंबद्ध बन गये। उनके अस्थिर पदार्थों और सिद्धांतों के कारण वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे लोभी और महत्वपूर्ण लोगों में से एक बन गये।

Gandhi’s Movements In Hindi

1915 जनवरी में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उन्होंने वहां भारतीय समुदाय के अधिकार के लिए जिस तरह से संघर्ष किया था, उसकी चर्चा न केवल लोगों में पढ़ी-लिखी थी, बल्कि आम जनता के बीच भी हो रही थी। भारत आने के बाद, गांधीजी ने किसी भी राजनीतिक गतिविधि में सीधे तौर पर शामिल होने की बजाय, गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह मानी। गोखले ने उन्हें सुझाव दिया कि वे पहले भारत की आलोचना करें और इसके लोगों की स्थिति का करीब से पता लगाएं। इसी उद्देश्य से गांधीजी ने करीब एक साल तक पूरे ब्रिटिश भारत का दौरा किया और लोगों की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति जानने का प्रयास किया।

फरवरी 1916 में गांधीजी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के उद्घाटन समारोह में भाग लिया, जो उनकी पहली बड़ी सार्वजनिक उपस्थिति थी। इस लेखक पर दिए गए उनके भाषण में सभी का ध्यान आकर्षित किया गया है। उन्होंने अपने भाषण में यह बात स्पष्ट की कि उस समय भारतीय राष्ट्रवाद के मुख्य रूप से उच्च वर्ग अर्थात प्रचारक लोग तक ही सीमित थे। गांधीजी चाहते थे कि यह आंदोलन सिर्फ अमीर और शिक्षित लोगों तक न रहे, बल्कि इसमें देश की आम जनता की भागीदारी भी हो। उनका सपना एक ऐसा राष्ट्रवाद था जो भारत के हर वर्ग, विशेष रूप से गरीब और किसान लोगों का भी सच्चा प्रतिनिधित्व करता था।

Champaran Satyagraha (1917)

कुणाल चौधरी महात्मा गांधी का भारत में पहला बड़ा जन आंदोलन था, जिसकी शुरुआत उन्होंने 1917 में की थी। यह आंदोलन बिहार के हिमाचल प्रदेश में हुआ, जहां नाइजीरिया द्वारा नील की खेती करने वाले किसानों पर भारी अत्याचार किये जा रहे थे। उस समय अरुणाचल आंदोलन की शुरुआत एक स्थानीय किसान, प्रिंस शुक्ला, गांधीजी से हुई और उन्हें वहां के किसानों की दुखभरी स्थिति के बारे में बताया गया। उन्होंने गांधीजी को वापस आने के लिए आमंत्रित किया।

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इस क्षेत्र के किसानों को ‘तिनकठिया सिस्टम’ के तहत कुल जमीन के 3/20 खंडों में नील की खेती करना पसंद था, जो उनके लिए नुकसानदायक और बेहद कठिन था। ब्रिटिश जमींदारी किसानों को मजबूर किया गया और विरोध करने पर उन्हें दंडित किया गया। जब गांधीजी ने मालदीव और इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें जिला हटाने का आदेश दिया। लेकिन गांधीजी ने वहां शांति और सद्भावना का मार्ग अपनाया, जिससे वहां से इनकार कर दिया गया, जिससे यह भारत का पहला सविनय अज्ञा आंदोलन बन गया।

गांधीजी की दृढ़ता और जन समर्थन के कारण सरकार को झुकाना पड़ा। उन्होंने एक जांच समिति संगीतज्ञ और स्वयं गांधीजी को भी शामिल किया। इस समिति की मंजूरी के आधार पर नील की खेती को जबरन खत्म कर दिया गया और किसानों को राहत मिल गई। एक अधिनियम के तहत किसानों को उनके नुकसान का 25% स्टॉक भी मिला। इस आंदोलन में राजेंद्र प्रसाद, नरहरि पार्लिन और जे.बी. कृपलानी जैसे प्रमुख नेताओं ने गांधीजी का साथ दिया। क्रांतिकारी विचारधारा ने सिर्फ किसानों के लिए राहत नहीं लाई, बल्कि यह भारत में गांधीजी की नेतृत्व क्षमता और अहिंसात्मक आंदोलन की ताकत का पहला उदाहरण भी बना।

Ahmedabad Mill Strike (1918)

रांची आंदोलन की सफलता के बाद महात्मा गांधी ने जनता को एकजुट करने का अगला प्रयास शहरों में श्रमिक वर्गों के बीच किया। यह आंदोलन मुहैय्या मिलों में काम करने वाले से मिला हुआ था, जिसे मुआहिले मिल स्ट्राइक के नाम से जाना जाता है। मार्च 1918 में यह हड़ताल तब शुरू हुई जब निवेशकों और मिलों के बीच वेतन को लेकर विवाद पैदा हो गया।

असल में, 1917 में प्लेग महामारी के दौरान, मिल असंतुष्ट ने अपने वेतन पर 75% बोनस देना शुरू कर दिया था। लेकिन जब प्लेग ख़त्म हो गया तो मिल मालिक उस बोनस को बंद करना चाहते थे। इसके विपरीत, कलाकारों की मांग थी कि उनकी मेहनत और फसल को देखते वेतन में 50% की बढ़ोतरी हो जाए।

गांधीजी के इस आत्म-त्याग और नैतिक बल के सामने मिल अनबैथ को झुका दिया गया, और अंततः उन्हें 35% वेतन वृद्धि की अनुमति दी गई। यह आंदोलन न केवल मजदूरों की जीत था, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे अहिंसा और आंदोलन के माध्यम से बड़े पैमाने पर सामाजिक बदलाव लाए जा सकते हैं।

Kheda Satyagraha (1918)

Kheda Satyagraha (1918)

1918 में अविभाज्य जिले के किसानों में भारी संकट था। विफलता का कारण विफलता का कारण बन गया और हालात इतने खराब हो गए कि किसानों के पास के किसानों तक के लाले पड़ गए। ऊपर से, बैंकिंग भी तेजी से बढ़ रही थी। इन कठिन मालदीव में किसानों ने सरकार से भूमि राजस्व में राहत देने की मांग की।

ब्रिटिश सरकार की अवैध संहिता के अनुसार, यदि किसी वर्ष में फसल का उत्पादन औसत 25% से कम होता है, तो किसानों को राजस्व में पूरी मिल छूट मिलनी चाहिए। लेकिन इस बार अधिकारियों ने किसानों की इस जायज मांग को नापसंद से खारिज कर दिया।

इस शांतिपूर्ण लेकिन मजबूत विरोध के दबाव में आख़िरकार सरकार झुक गई। उन्होंने आदेश दिया कि केवल युवा किसानों से कर वसूला जाए जो वास्तव में भुगतान करने में सक्षम हैं, और किसी भी किसान से कर वसूला न जाए। यह गांधीजी की नैतिक शक्ति और जन समर्थन का एक और उदाहरण था। इस आंदोलन में गांधीजी के साथ नेता सरदार वल्लभभाई पटेल, नरहरि पारिख और इंदुलाल याग्निक जैसे प्रमुख नेता शामिल थे।

Satyagraha against the Rowlatt Act (1919)

1917 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में बहुसंख्यक क्रांतिकारी समूह को एकजुट करने के लिए एक विशेष समिति का गठन किया। इस समिति की राष्ट्रपति सचिवालय सिडनी राउलेट ने की, और इसका उद्देश्य ‘देशद्रोही षड्यंत्रों’ की जांच करना था। इस समिति की परियोजना के आधार पर 1919 में रोलेट अधिनियम पारित किया गया, जिसे गांधीजी ने ‘कला कानून’ कहा था।

इस कानून के तहत सरकार को यह अधिकार मिल गया है कि वह किसी भी व्यक्ति पर बिना मुकदमा चलाए सिर्फ शक के आधार पर दो साल तक जेल में रह सकती है। यह कानून प्रत्यक्षीकरण (हबियस कोसस) और अपील जैसे मूल अधिकारों को भी निलंबित करता था।

हालाँकि आंदोलन का उद्देश्य पूरी तरह से अहिंसा था, लेकिन भारत की कुछ विचारधाराओं में हिंसा भड़क उठी। गांधीजी को इस बात से गहरा दुख हुआ और उन्होंने आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया, उनका मानना ​​था कि जब तक जनता पूरी तरह से अहिंसा आंदोलन के लिए तैयार नहीं हो जाती, तब तक उन्हें जारी नहीं रखा जा सकता।

इस रोलेट साइक्स ने ब्रह्मांड में गांधीजी की प्राथमिकता को शिखर और विचार – अहिंसा और सिद्धांत – को भारत के कोने-कोने तक पहुंचाया। यह भारतीय आंदोलन के बीच राजनीतिक जागरूकता और ब्रिटिश सरकार के प्रति असंतोष को शामिल करने वाला एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी प्रस्ताव था।

Non-cooperation Movement (1921–22)

जलियांवाला बाग हत्याकांड 1919 में रौलेट एक्ट के विरोध के दौरान हुआ था, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस भीषण नरसंहार ने लोगों के दिलों में गुस्सा और दुख भर दिया। इसके बाद महात्मा गांधी ने 1920 में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया। इस आंदोलन का उद्देश्य था ब्रिटिश शासन के साथ सभी तरह के सहयोग को समाप्त कर देना और स्वराज की दिशा में आगे बढ़ना।

इस आंदोलन को मुस्लिम समुदाय के खिलाफत आंदोलन के साथ भी जोड़ा गया, जिसकी मांग थी कि तुर्की के सुल्तान (खलीफा) को मुस्लिमों के पवित्र स्थलों पर नियंत्रण बनाए रखने दिया जाए। इस तरह असहयोग आंदोलन एक राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया, जिसमें हिंदू और मुस्लिम एक साथ अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हुए।

Civil Disobedience Movement (1930–34)

सविनय अज्ञा आंदोलन, जिसे नमक के नाम से भी जाना जाता है, भारत स्वतंत्रता संग्राम का दूसरा बड़ा जन आंदोलन था। बाजीगरी की लड़ाई को न सिर्फ तेज किया गया, बल्कि आम जनता – किसानों, मजदूरों, महिलाओं और किशोरों – को सीधे जोड़ा गया।

कांग्रेस ने गांधीजी को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा। उन्होंने निर्णय लिया कि आंदोलन की शुरुआत नमक के खिलाफ होगी, क्योंकि नमक से हर आम आदमी का पतन हो गया था और इस पर अन्याय पूर्ण रूप से लागू हो गया था।
12 मार्च 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से 78वीं बार निकोलस के साथ दांडी यात्रा प्रारम्भ की। यह यात्रा करीब 240 किमी लंबी थी और 24 दिन बाद 6 अप्रैल 1930 को दांडी यात्रा पर गांधीजी ने समुद्र के पानी से नमक कानून का उल्लंघन किया। इसी क्षण से सविनय अज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।

गांधीजी जब भारत में रुके, तो उनका आंदोलन फिर से शुरू हुआ, लेकिन अब जनसमर्थन पहले जैसा नहीं रहा। सरकार की दमन नीति, नेताओं की गिरफ़्तारी और थकान के चलते आंदोलन धीरे-धीरे गिरता गया।

Quit India Movement (1942)

भारत छोड़ो आंदोलन जिसे अगस्त क्रांति आंदोलन भी कहा जाता है, भारत की आज़ादी की लड़ाई की तीसरी सबसे बड़ी लहर मानी जाती है। इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था और इसकी शुरुआत 8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति क्षेत्र) में हुई थी। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ एक प्रमुख विरोध था, जो पारंपरिक सिद्धांतों से अलग, सीधा और तेज़ था। देखने वाले ने पांच वर्षों में भारत के इतिहास को अंतिम रूप से प्रभावित किया।

इस आंदोलन के पीछे कई कारण थे, जिनमें सबसे प्रमुख थे – भारतीय जनता का ब्रिटिश शासन से मोहभंग, क्रिप्स मिशन की विफलता और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान तीव्र आर्थिक और सामाजिक कठिनाइयाँ।

8 अगस्त 1942 को कांग्रेस की अखिल भारतीय सहायक समिति ने ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया। उसी दिन महात्मा गांधी ने देशवासियों को ऐतिहासिक नारा दिया था – “करो या मरो”। इस आंदोलन की मांग थी कि ब्रिटिश शासन को तुरंत ख़त्म किया जाए, युद्ध के बाद एक अंतरिम सरकार बनाई जाए और भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाए।

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निष्कर्ष

गांधी जी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान केवल तानाशाहों तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने देश को एक नई सोच, एक नया रास्ता और एक नई आत्मा दी। उनके द्वारा शुरू किया गया असहयोग आंदोलन, नमक विज्ञान, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलन केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनता की आवाज बने, बल्कि भारतवासियों को एकता, आत्मबल और अहिंसा की ताकत का एहसास भी दिलाते हैं।

गांधीजी ने सिखाया था कि हिंसा के बिना भी बड़ी से बड़ी सत्ता को हासिल किया जा सकता है। उनके दर्शन, उनके सिद्धांत और उनका नेतृत्व आज भी भारत नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

आजाद भारत नेपोलियन की रजिस्ट्री कायम है, और महात्मा गांधी का नाम हमेशा के लिए आजाद भारत की आजादी की आजादी के चैप्टर के रूप में याद किया जाएगा।

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