
Mount Abu: राजस्थान का एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल माउंट आबू अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी सिरे पर स्थित हरी-भरी पहाड़ियों के बीच बसा एक सुंदर एवं शांत शहर है। इसे राजस्थान का कश्मीर भी कहा जाता है। पेड़-पौधों सी भारी पहाड़ियों के कारण यहाँ का तापमान हमेशा ठंडा रहेता है। इन पेड़-पौधों मैं शंकुधारी पेड़ व फूल देने वाली झाड़िया भी शामिल है। माउंट आबू की और जाने वाली सड़क सड़क धुमावदार है जो यहा प्रवेश करने पर प्रदेश मैं बिखरी अजीब आकृतियों वाली विशालकाय चट्टानों और तज प्रवाह से चलने वाली हवाओ से परिचय करती है। 11वीं-13वीं शताब्दी का उत्कृष्ट दिलवाड़ा जैन मंदिरों के विस्मयकारी समूह के कारण माउन्टआबू को तीर्थ स्थलों की श्रेणी मैं रखा गया है। आख्यानों के अनुशार आबू हिमालय के पुत्र का प्रतीक है, जिसका नाम शक्तिशाली सांप अरबूअदा से पद है, जिसने भगवान शिव के पवित्र सांड नंदी को गहरी खाई मे गिरने से बचाया था।
माउंट आबू साधु-संतों का निवास स्थल रहा है। इनमे प्रसिद्ध संत वरिष्ठ भी थे। जिनके बारे मे कहा जाता है की इन्होंने धरती से राक्षसों का नाश करने की लिए यज्ञ द्वारा अग्नि कुंड से छार अग्निकुल राजपूत वंशों को उत्पन्न किया था। शहर के करीब स्थित एक प्राकृतिक जारने के पास इस यज्ञ का आयोजन किया गया था। यह झरना गाय के शिर जेसी आकृति वाली चट्टान से फूटता है, इसीलिए इस स्थल को गौमुख कहते है।
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Mount Abu पर्वत संक्षिप्त इतिहास
आबू पर्वत की उत्पत्ति के लिए अनेक विद्वान व इतिहासकार अलग-अलग मत देते हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान दीतैरा व प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार श्री एम.एल. हीरा अरावली को हिमालय से भी प्राचीन मानते हैं तो पुराणों की गाथाएँ इसे हिमालय पुत्र कहती है। कहते हैं कि प्राचीन काल में जब भगवान शंकर के भक्त यहाँ वास करते थे उससे भी पूर्व वशिष्ठ मुनि यहाँ तपस्या करते थे और यहाँ स्थित एक गढ्ढे में मुनि की गाय कामधेनु गिर गई जिसे निकालने के लिए मुनियों के तप से प्रभावित होकर सरस्वती नदी ने अपने जल द्वारा उसे बाहर तो निकाल दिया लेकिन पानी के गढ्ढे से हानि होने लगी इस संकट से मुक्त होने हेतू वशिष्ठ मुनि ने शिव की प्रार्थना की भगवान शिव के कहने पर कैलाश पर्वत ने नन्दीवर्धन द्वारा यहाँ अर्बुदाचल पर्वत श्रृंखला उत्पन्न कर दी जो कालांतर में आबू पर्वत कहलाने लगी।
कहा जाता है कि आरम्भ में अस्थिर आबू पर्वत को स्थिर करने के लिए भगवान शिव ने पाँव का प्रहार किया इससे उनके पांव का अगला भाग जहां कित हुआ वहीं पर आज प्रसिद्ध अचलेश्वर महादेव का मंदिर है।
अबूल फजल नामक प्रसिद्ध इतिहासकार के अनुसार आबू अर्बुदाचल का ही अपभ्रंश हैं अर्बुदा एक देवी शक्ति है जो स्त्री के रूप में यात्रियों का मार्ग दर्शन करती है और अचल पर्वत का पर्याय है। यहाँ मैदानों में अनेक झरनें आदि बहा करते थे अतः यहाँ ऊँचे पर्वत की चोटी पर स्थित किले में भी एक लम्बे समय तक नहीं रहा जा सकता था। सम्राट चन्द्रगुप्त के दरबार में युनान राजदूत मेगस्थनीज व इतिहासकार प्लीनी ने इस पर्वत को मृत्यु दण्ड का पर्वत कहा है। चीनी यात्री हाँग च्वांग ने भी इसका वर्णन किया है और सम्राट अशोक के समय में गुप्तकाल तक आबू पर्वत की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी। तथा परमार काल में ही इसका यौवन चरम सीमा पर था और आबू पर्वत के इतिहास का वास्तविक स्वर्ण युग यही था।
Maha Kumbh Mela 2025: इतिहास और उत्पत्ति
13वीं शताब्दी तक राज्य करने वाले परमारो के शासन काल में इस पर्वत पर अनेक प्रकार के कलात्मक निर्माण हुए और इसे कलात्मक बनाने का श्रेय इसी युग को जाता है। यहाँ रहकर परमारो को गुजरात, उदयपुर एवं जालौर के शासकों से युद्ध करना पड़ा फिर भी उन्होंने अपने राज्य को दक्षिण में नर्मदा तट और पश्चिम में पाकिस्तान स्थित अमरकोट तक विस्तृत कर यह कहावत प्रचलित की कि ‘दुनिया परमारो की’।
इस वंश के सम्राट धारावर्ष ने संवत 1220 से 1276 तक आबू पर राज्य किया। इसके बाद इस वंश का पतन होना आरम्भ हो गया तथा सन् 1302 से 1311 तक देवड़ा चौहानो से इनका युद्ध हुआ तथा ये देवड़ा चौहानों के द्वारा दिए गए धोखे में आकर पर्वत से नीचे उतरकर उनके हाथों परस्त हो गए तदउपरांत देवड़ा चौहानो ने एक शतक तक यहाँ एक छत्र राज्य किया। आबू पर इस वंश की नींव डालने वाला राव लूम्बा था। यहीं से वे सन् 1405 में अपनी राजधानी को सिरोही ले गए। कुछ समय तक यह क्षेत्र महाराणा कुम्भा के आधिपत्य में भी रहा।
कर्नल जेम्स टाँड ने सन् 1822 में इस स्थान का पता लगाकर प्रथम यूरोपियन अधिकारी द्वारा आबू देखने का गौरव प्राप्त किया और इसकी प्रसिद्धि की, तथा सन् 1840 में अपाहिज व बीमार यूरोपियन सैनिकों को यहाँ स्वास्थ्य लाभ हेतु भेजा, बाद में अंग्रेजो ने सिरोही महाराज शिव सिंह से यहाँ सेनिटोरियम बनाने के लिए एक भूखण्ड इस शर्त पर खरीदा व यहाँ गौवध निषेध रहेगा। आगे चलकर सन् 1917 में सिरोही महाराव केशरीसिंह ने 27 हजार रूपये सालाना के बदले अंग्रेजों को दे दिया तथा भारत स्वतंत्रता के कुछ समय पूर्व अंग्रेजों ने उक्त स्थाई पट्टे को रद्द कर आबू पर्वत को पुनः सिरोही राज्य को सौंप दिया।
स्वतन्त्रता के बाद आबू सहित एक छोटा भाग बम्बई में सम्मिलित हो गया जो सन् 1956 तक बनासकांठा जिले में रहा। उसके बाद राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्णयानुसार बम्बई राज्य में विलीन भाग एक नवम्बर 1956 से राजस्थान में पहले की तरह मिला दिया। वर्तमान में आबू पर्वत सिरोही जिले का एक उपखण्ड हैं जो आबू नगर पालिका की देख-रेख में विकसित हो रहा है।

दर्शनीय स्थल
1. दिलवाड़ा जैन मंदिर
11वीं और 13वीं सदी मे बने इन जैन मंदिरों के समूह अद्भुत स्थापत्य कला और शिल्प कला के लिए जाने जाते है। यह संगमरमर से बने लालित्यपूर्ण मंदिर है। इन मंदिरों मे सबसे पुराना मंदिर जैनो की प्रथम तीर्थकर को समर्पित विमल वसाही का है, जिसे सन 1013 मे विमल शाह ने बनाया था। विमल वसाही गुजरात के शशकों का प्रतिनिधी था। मुख्य मंदिर ने ऋषभदेव की मूर्ति व 52 छोटे मंदिरों का लंबा गलियारा है जिसमे प्रत्येक मे जैन तीर्थकारों की सुंदर प्रतिमाए लगी है।
बाइसवें तीर्थकर-ईसवी सन 1231 मे नेमिनाथ का लूण वसाही मंदिर का निर्माण दो भाइयों वस्तूपाल व तेजपाल ने किया था। वह गुजरात की शासक राजा वीर धवल, जो पोरवाल जैन समुदाय से संबंध रखते थे, के मंत्री थे। द्वार के खोलों ड्यौढ़ी पर बने खंभों, प्रस्तर पादों व मूर्तियों के कारण मंदिर शिल्पकला का बेहतरीन नमूना है। अन्य तीन मंदिर ऋषभ देव, पार्श्वनाथ तथा महावीर स्वामी को समर्पित हैं।
2. ओम शांति भवन
इस शानदार इमारत में ब्रह्मा कुमारी समुदाय वर्ल्ड स्प्रीचुअल यूनिवर्सिटी है। यहाँ के खंभे रहित हॉल में लगभग साढ़े तीन हजार लोगों के बैठने की क्षमता है।
3. नक्वी झील
पहाड़ियों के बीच स्थित यह एक सुरम्य छोटी सी झील नगर के मध्य स्थित होने के कारण पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। इसमें नौका विहार भी किया जाता है। इस झील पर अनेक टापू भी है। झील के चारों आर चट्टान की अजीब सी आकृति विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
टॉड रॉक (चट्टान) जो वास्तविक मेंढ़क की तरह लगती है तथा देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो यह अभी झील में कूद पड़ेगा, विशेष उल्लेखनीय है। इनके अलावा नन चट्टान (रॉक) व नन्दी चट्टान (रॉक) आदि भी हैं
4. गौमुख मंदिर
गाय के मुख के समान आकृति वाली चट्टान से निकलने वाले प्राकृतिक झरने के कारण इस तीर्थ का नाम गौमुख पड़ा। मान्यता है कि संत वशिष्ठ का प्रसिद्ध अग्नि यज्ञ भी यहीं हुआ था। इस रमणीय पृष्ठभूमि में शक्तिशाली सांप अरबुअदा का आकर्षक ढंग से तराशा हुआ पहाडी मंदिर भी स्थित है। पास ही नंदी की शानदार संगमरमर से बनी आकृति है, इस पवित्र बैल (नन्दी) को अरबुअदा ने बचाया था।
5. अधर देवी मंदिर
इस मंदिर को एक विशाल चट्टान से उकेरा गया है। यहाँ जाने के लिए 360 सीढियां पार करनी पड़ती हैं। यह पर्यटकों का मनपसंद स्थल है।
6. सनसेट पॉईंट
जब सूरज अरावली की पहाड़ियों को अपनी किरणों से ढ़क देता है और एक क्षण पश्चात् ही वह स्वयं डूब जाता है। इस मोहक दृश्य का यह नजारा अद्भुत है, इसलिए इसे सनसेट पॉईंट कहा जाता है। शाम के समय इस जगह पर लोगों की भारी भीड़ रहती हैं।
7. हनीमून पॉईंट
यह अनाद्रा पाइंट के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ से हरे भरे मैदानों व घाटियों के मनमोहक दृश्य भी दिखाई देते हैं। गोधूली वेला में यह स्थान सबसे सुंदर लगता है।
8. श्री रघुनाथ जी का मंदिर
नक्खी झील के पास ही स्थित श्री रघुनाथजी का मंदिर है जिसमें भगवान रघुनाथ की सुंदर मूर्ति प्रसिद्ध हिन्दू उपदेशक श्री रामानन्द ने चौदहवीं शताब्दी में स्थापित किया था।
9. बाग व बगीचे
माउंट आबू में हर तरफ आकर्षक बाग व बगीचे फैले हुए हैं। अशोक वाटिका, गांधी पार्क, नगरपालिका पार्क, शैतानसिंह पार्क और टेरेस गार्डन आदि कई उल्लेखनीय बगीचे हैं।
10. संग्रहालय व कलादीर्घा
राज भवन स्थित इस संग्रहालय में 8वीं-12वीं शताब्दी के पुरातत्वीय खुदाई में मिली चीजों का संग्रह है। जैन कांसे की नक्काशी, पीतल का काम आदि भी दर्शनीय है।

माउंट आबू से भ्रमण
ट्रेवर्स टैंक (5 किमी)
यह जलाशय अंग्रेज इंजीनियर, जिसने इसका निर्माण किया था, के नाम से जाना जाता है। घनी वृक्षयुक्त पहाड़ियों के कारण पक्षी प्रेमियों के लिए यह आनन्ददायक स्थल है तथा कबूतर, मोर व तीतर के लिए स्वर्ग के समान है।
अचलगढ़ (10 किमी.)
इस भव्य किले में कई जैन एवं हिन्दु मंदिर बने हुए हैं जिनमें अचलेश्वर महादेव मंदिर (ईसवी सन् 1412) और कांतीनाथ जैन मंदिर (ईसवी सन् 1513) मुख्य है। इसमें सोने की परत चढ़ी मूर्ति है। अचलेश्वर महादेव मंदिर के समीप मंदाकिनी कुंड व परमार धारावर्ष की एक मूर्ति स्थित है।
राणा कुंभा ने इस गढ़ का निर्माण चौदहवीं शताब्दी में करवाया था और सड़क मार्ग द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है।
गुरू शिखर (15 किमी.)
यह अरावली पर्वतमाला का उच्चतम शिखर (समुद्र तल से 1722 मीटर ऊँचा) यहाँ से माउंट आबू के देहाती परिवेश का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। शिखर पर एक छोटा शिव मंदिर व दत्तात्रेय का मंदिर भी है।
आबू रोड (28 किमी.)
माउंट आबू के तलहटी में बसा यह छोटा सा नगर माउंट आबू का प्रवेश द्वार है। यहाँ शुद्ध सिन्दूर एवं कुमकुम खरीदा जा सकता, इसके अलावा पत्थर की कलाकृतियां भी पर्यटकों का मन मोहती है।
मेले और त्यौहार
ग्रीष्म समारोह (1 से 3 जून तक)
राजस्थान के इस वन संकुल आश्रम में गर्मियों का मौसम उल्लासपूर्ण त्यौहारों का समय होता है। आम के बागों, सुंदर बोहिनियां के पेड़ और जंगली बेरों की झाड़ियों से आच्छादित पहाड़ी नगर, प्रत्येक वर्ष जून के पहले सप्ताह में उत्साह से मनाया जाता है। हरे-भरे परिवेश व मनोहर झील के बीच, जनजातियों के उत्सव, लोक व्र शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों के कारण यह आनन्ददायक महोत्सव बन जाता है।
गणगौर
यहां मनाई जाने वाली गणगौर सामान्य गणगौर त्यौहार से अलग तरह से मनाई जाती है। एक माह तक चलने वाले गणगौर त्यौहार में गरसिया जाति के आदिवासी गणगौर को गांव-गांव घुमाते हैं। इस दौरान आदिवासी युवको-युवतियों को अपनी पसंद का साथी चुनने की छूट होती है। आदिवासी युवक अपनी मनपसंद लड़की को लेकर भाग जाते हैं और घरवाले उनका विवाह कर देते हैं। यह अपनी तरह का विश्व का अनूठा त्यौहार है।
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